
अभी हिंदी ब्लॉग जगत में “अश्लील विज्ञापनों के खिलाफ” एक जोरदार बहस चल रही है, शुरुआत अनिल पुसदकर ने की और उस कई प्रतिक्रियाएं आयीं, जिन्हें मैंने अपनी पिछली पोस्ट में संकलित किया, उसके बाद ये ही चर्चा कई और ब्लोगों पर देखी गयी | विषय सही है, बहस सार्थक चल रही है, जहाँ तक मेरी बात है तो इस “अश्लीलता” का मैं सिरे से विरोध करता हूँ |आखिर हम इन चीजों से हम क्या साबित करना चाहते है| इन्हीं सारी पोस्टों, टिप्पणियों के बीच एक ऐसी टिप्पणी मिली जो किसी पोस्ट से कम नहीं लगी, अतः आप भी इसको पढ़िए | “रचना जी, विज्ञापनों का जो मुद्दा उठाया गया है वह अपनी जगह ठीक है। वहाँ विचित्र व आपत्तिजनक विज्ञापनों...