गुरुवार, 18 मार्च 2010

हिंदी ब्लॉग जगत पर कल पढने को मिलीं कुछ सार्थक टिप्पणियाँ


कल रोज की तरह हिंदी ब्लॉग जगत में विचरण कर रहा था, तो एक बेहद बढ़िया एवं सार्थक पोस्ट पढ़ने को मिली | पोस्ट तो सार्थक थी ही साथ ही टिप्पणियाँ भी उतनी ही सार्थक | मैं यहाँ कुछ टिप्पणियाँ फिर यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ, अगर आप इससे छूट गए हो तो यहाँ पढ़ लें|
मूल पोस्ट का कुछ अंश यहाँ है….पूरी पोस्ट लेखक के ब्लॉग पर जाकर पढ़ लीजियेगा |
लड़कियां मोबाईल का प्लान नही है टाटा सेठ जो चाहे रोज़ बदल लो!
लड़किया क्या होती है?प्रेमिका,दोस्त या रोज़ बदलने वाली कोई कोई खूबसूरत चीज़?सच मानें तो इस देश मे महिलाओं को जो स्थान दिया गया था पता नही क्यों वो अब षड़यंत्रपूर्वक छीना जा रहा है?क्या आप एक प्रमिका को एक सेकेण्ड मे दोस्त मे बदल सकते हैं?क्या आप अपनी प्रेमिका को दोस्त मेबदल कर उसे छोड़ दूसरी लड़की के साथ जा सकते हैं?नही ना?मगर आजकल ऐसा ही होता है,ये मैं नही कह रहा बल्की एक जानी मानी मोबाईल कंपनी का विज्ञापन कह रहा है?देखा है ना आपने टीवी पर वो विज्ञापन?नही?अरे कैसी बात कह रहें है? टीवी पर आजकल एक मोबाईल कम्पनी का विज्ञापन खूब दिखाया जा रहा है।इस विज्ञापन में एक जोड़ा रेस्त्रां मे बैठा रहता है और अचानक़ लड़का प्रेम पर सवाल खड़ा करता है जिस पर लड़की भी सहमती जताती देती है और लड़का लड़की से कहता है कि आज से वे दोस्त हैं और लड़का ऊठ कर दूर बैठी उसे देख कर मुस्कुरा रही एक बेहद उत्तेजक़ और जिस्म ऊघाड़ू कपड़ों मे बैठी लड़की की ओर चला जाता है।वो लड़की उसे देख कर मुस्कुराती है और दोनो उठ कर चल देते हैं तभी लड़का अपनी पुरानी प्रेमिका की ओर देखता है तो उससे एक दूसरे युवक को मनुहार करते देखता है।एक पल के लिये चौंकने के बाद वो मुस्कुराता है और नई लड़की के साथ निकल लेता है और उसके बाद मोबाईल कंपनी का डेली प्लान का विज्ञापन शुरू हो जाता है……..पूरा पढ़े
रचना जी ने कहा …
आप ने जब भी लिखा हैं मेरा सहमति का कमेन्ट वहा जरुर होगा और टी वी देखने के लिये भी समय चाहिये होता हैं जो आज कल कम ही मिलता हैं बाकी मैने सुना हैं charity begins at home . ब्लॉग जगत मे महिला ब्लॉगर के प्रति शब्दों के चुनाव पर आप कभी जरुर लिखे वैसे मै तो लिखती ही रहती हूँ !!और आगे भी पुरजोर कोशिश रहेगी कि जहां तक हो सके अपने आस पास से जितनी अपमान जनक भाषा का प्रयोग होता हैं जो कि एक प्रकार का जेंडर बायस हैं उसको सामने ला सकूँ क्युकी taken for granted हैं कुछ बाते जिनको सामने लाना जरुरी हैं । आप विज्ञापन से लाये , मै ब्लॉग / कमेन्ट से लायूं शायद बदलाव कि शुरुवात हो
सादर
आराधना चतुर्वेदी  जी ने कहा ….
बाज़ार में औरतों को आज से नहीं, बहुत पहले से शो पीस की तरह पेश किया जाता है. यह विज्ञापन मुझे भी बहुत अटपटा लगा था. लेकिन यह सिर्फ़ औरतों के विरुद्ध नहीं है क्योंकि इसमें लड़का-लड़की दोनों अपने-अपने पार्टनर्स बदल लेते हैं. यह आज की नयी पीढ़ी को सम्बोधित है, जो पहले से ही प्रेम जैसी चीज़ों को तुच्छ समझती है और जिसे इस तरह के विज्ञापन यह आश्वस्ति दिलाते हैं कि तुम कुछ गलत नहीं कर रहे हो, ऐसा तो होता ही है, यह तो आज का लाइफ़ स्टाइल है. तेजी से गर्ल फ़्रैंड या ब्वॉय फ़्रैंड बदलना एक स्टेटस सिम्बल बन गया है.
ये तो हुयी एक बात. लेकिन जिस दूसरी बात पर रचना जी ने आपत्ति की है, वह है ब्लॉगजगत की कुछ औरतों के लिये एक टिप्पणी में यह कथन " ओर ब्लांग कि कुछ खास नारिया जो अपने आप को ब्लांग की ओर नारियो की ठेके दार समझती है वो क्यो नही ऎसे मामलो पर बोलती?? जो सभी ब्लांग पर थाने दारो की तरह घुमती फ़िरती है..." यह कथन किसी भी महिला को सम्बोधित हो, पर ऐसी भाषा का प्रयोग कतई उचित नहीं है.
नारी ब्लॉग, टीवी सीरियल्स और विज्ञापनों में नारी-चित्रण जैसे मुद्दों को समय-समय पर उठाता रहा है. इसके अतिरिक्त इस ब्लॉग का प्रयास रहता है कि ब्लॉगजगत में महिलाओं के प्रति अनुचित भाषा के प्रयोग, आपत्तिजनक लेखों, अभद्र टिप्पणियों और बाज़ार की तरह नारी के शो-पीस की तरह प्रयोग का विरोध करे. नारी ब्लॉग इस समय औरतों का सबसे बड़ा कम्युनिटी ब्लॉग है. इसलिये जब यह कहा जाता है "ब्लॉग जगत की कुछ नारियाँ" तो यह आक्षेप हम पर भी किया जाता है. नारी कोई भी हो, किसी भी जाति, वर्ण, धर्म की हो, उसके विरुद्ध यदि ऐसी भाषा का प्रयोग होगा तो हम इसका विरोध करेंगे.
रंजना सिंह जी ने कहा …
यह विज्ञापन देखा तो नहीं है,पर समझ सकती हूँ की कैसे दिखाया जा रहा होगा...
क्या कहूँ,खून खौल जाता है ऐसे विज्ञापनों को देखा कर ... पर सिवाय इसके बहुत अधिक कुछ कर पाना हमारे हाथ में भी तो नहीं....
जिनके हाथ में कुछ करने का सामर्थ्य है,वे तो कब के अपने आँखों पर नोटों की पट्टी और कानों में तेल डाले बैठे हैं...उन्हें क्या फर्क पड़ता है कि देश की संस्कृति को ये विज्ञापन,टी वी कार्यक्रम कैसे प्रतिपल बलत्कृत करते रहते हैं...
किसे कहें...स्त्रियों की नग्नता के साथ चिपका कर अपने उत्पाद को येन केन प्रकारेण बाज़ार में खपाने वाले उद्योगपतियों को....पैसा ले इन्हें प्रचारित करने वाले संचार माध्यमों को....या फिर अपने को वस्तु बना परोसती इन अर्थलोलुप बालाओं को....

डॉ महेश सिन्हा जी ने कहा …
पहली बात तो बधाई इसपर लिखने के लिए कल रात ही इसपर लिखने की सोच रहा था :) .
अब दूसरी बात पर की क्या सही और गलत तो ज्यादातर लोग इसका विरोध करेंगे लेकिन थोड़ा आसपास नजर घुमाएँ तो तस्वीर कुछ धुंधली ही दिखाई देती है .
आज महानगरों और छोटे शहरों में कोई ज्यादा अन्तर नहीं रह गया है . live in relationship( बिना विवाह दो विपरीत लिंग के लोगों का एक घर में रहना ) इस देश में भी अपनी धमक दे चुका है .
व्यापारवाद जिसे हमने आँखें बंद करके पश्चिम से अपनाया है तो और क्या उम्मीद की जा सकती है.
एक पुराना गीत याद आ गया : रिश्ते नाते प्यार वफा सब वादे हैं वादों का क्या ........
राज भाटिय़ा जी ने कहा…..
ऎसे विज्ञापन पर लोग कयो नही एतराज करते, ओर ब्लांग कि कुछ खास नारिया जो अपने आप को ब्लांग की ओर नारियो की ठेके दार समझती है वो क्यो नही ऎसे मामलो पर बोलती?? जो सभी ब्लांग पर थाने दारो की तरह घुमती फ़िरती है.... अगर हम सब इन बातो का बिरोध करे तो किसी की हिम्मत नही हो सकती ऎसे विज्ञापन दिखाने की.
आप ने इस ओर ध्यान दिलाया, आप का बहुत बहुत धन्यवाद
भावेश जी ने कहा…..
अनिल जी बस इतना ही कहूँगा की आज के परिवेश में हमारे देश में नोट और वोट के लिए देश में कोई भी कही भी किसी भी स्तर तक गिर सकता है. अच्छा और बुरा कौन देखता है. ये भोंडा विज्ञापन भी ग्राहक को आकर्षित कर कमाई करने का खेल है.

मेरे पोस्ट लिखने के बाद कुछ और टिप्पणियाँ और आई है, मैं उनको भी यहाँ समेट रहा हूँ :
रचना जी ने कहा …
बिना पोस्ट पढे और बिना कमेन्ट को पढ़े और समझे आप अगर कमेन्ट करते हैं तो पोस्ट लेखक और कमेन्ट करने वाले दोनों के साथ और खुद अपने साथ अन्याय ही करते हैं । जबरदस्ती कमेन्ट देना क्या जरुरी हैं । जो बात राज भाटिया ने कही हैं और मैने और मुक्ति ने प्रतिकार किया हैं आप उस कथन को मेरा बयान कह रहे हैं । हिंदी ब्लॉगर कितना पढते हैं और कितना उनका पूर्वाग्रह हैं इसी से पता चलता हैं ।इस गलत ब्यान बाज़ी को आप क्या कहेगे जो आप कर रहे हैं और जो प्रश्न आप मुझसे पूछ रहे हैं अपने परम मित्र श्री राज भाटिया से पूछ कर पोद्सत बनाए । हद्द हैं और अनिल जी ऐसे कमेन्ट आप एप्रोवे भी कर रहे हैं ???


रेखा श्रीवास्तव जी ने कहा....

विज्ञापन में चाहे वो सेविंग करें का हो उसमें लड़की जरूर दिखाई देगी, जैसे की हर चीज उससे ही जुड़ी है. ये हैं व्यापार के तौर तरीके. इस तरह के विज्ञापन निंदनीय हैं, वैसे मैंने देखा नहीं है क्योंकि मैं TV पर जाने का समय कमही निकाल पाती हूँ.


@ राज भाटिया जी,

वैसे इस समाज के थानेदार तो अभी तक मर्द ही होते आ रहे हैं? अब गर आप हम सब को भी उसी श्रेणी में रख रहे हैं तो नाम भी उजागर कर दें तो ये तथाकथित थानेदार अपनी ड्यूटी तो संभाल लें. रहा सवाल ब्लॉग पर जाने का तो सभी एक दूसरे के ब्लॉग पर जाते हैं. मैं इसका अपवाद हूँ. अगर बहुत अच्छी चीज ब्लोग्वानी या चिट्ठाजगत पर नजर आ जाती है तभी उधर का रुख करती हूँ अन्यथा समय का आभाव है. अब जब ये ब्लॉग नजर आ गया तो चली गयी.

अनिल जी, जैसे हम विज्ञापन में इस तरह के प्रदर्शन के प्रति विरोध प्रकट करते हैं , वैसे ही कमेन्ट पर भी जो आप अपने लिए स्वीकार न करें उसको कमेन्ट में भी स्वीकार न करें.जिसमें कि किसी को भी आक्षेपित किया गया हो. वह हम भी हो सकते हैं और आप भी.

डॉ महेश सिन्हा जी ने कहा ....
" हिंदी ब्लॉगर कितना पढते हैं और कितना उनका पूर्वाग्रह हैं इसी से पता चलता हैं "

यह तो सारे हिन्दी ब्लागरों और हिन्दी की तौहीन है . हिन्दी से इतना गुरेज है तो लोग यहाँ क्या कर रहे हैं

प्रशांत प्रियदर्शनी जी ने कहा .....

मेरी समझ थोड़ी कम है मगर फिर भी मुझे जो समझ में आया वह जरूर कहना चाहूँगा.. इस एड में महिला को लेकर कहीं भी बात नहीं कही जा रही है और ना ही महिलाओं को बाजार में बैठा दिखाया जा रहा है.. इस एड में जो लड़के कर रहे हैं वही लड़कियां भी कर रही हैं.. एक तरह का सांस्कृतिक हमला कह सकते हैं इसे..


वैसे मैंने आम जिंदगी में भी ऐसा कुछ देखा है(कालेज जीवन में), जहाँ लड़के-लड़कियों को हर हफ्ते ब्वाय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड बदलने का शौक था, और लड़के-लड़कियां भी मन में बिना किसी ग्रंथी को पाले इसे आराम से स्वीकार करते रहे थे..

मैं यह सब बात इन बातों के समर्थन में नहीं कर रहा हूँ, इस सांस्कृतिक हमले के विरोध में मैं भी हूँ.. मगर यह भी जरूर कहूँगा कि चाहे एक पीढ़ी पहले के लोग कितना भी विरोध जताए, मगर बीता समय वापस नहीं लाया जा सकता है.. समय का पहिया कभी पीछे कि तरफ नहीं घूमता है.. एम टीवी कल्चर का एक और प्रभाव है यह..

वैसे इसी विषय पर एक और पोस्ट लिखी गयी है :
अनिल पुसदकर जी के नाम पाती किन्तु इससे उनका कोई लेना देना नहीं जो........व्यक्तिगत विचारों को सर्वोपरि मानते हैं......?

12 टिप्पणियाँ:

Arvind Mishra ने कहा…

अच्छा संकलन किया है राहुल अपने शुक्रिया !

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

महत्वपूर्ण बात को उठाया है। हम रोज ही समाज में नारियों के प्रति अपमान जनक भाषा का प्रयोग देखते हैं। वास्तव में भाषा स्त्रियों के प्रति समाज में जो मूल्य स्थापित हैं उन से उत्पन्न होती है। यदि हम नए मूल्यो को स्थापित करना चाहते हैं तो निश्चित ही हमें निरंतर एक सजग भूमिका निभानी होगी। कुछ दिन पहले अदालत परिसर में दो लोग बात कर रहे थे और उन के मुहँ से लगातार ऐसे अपशब्दों का प्रयोग हो रहा था जो न केवल बेवजह थे अपितु नारियों के प्रति सामाजिक मू्ल्यों की चुगली कर रहे थे। मुझे अपनी ओर ध्यान देते देख उन में से एक सकपकाया। इस अवस्था में मैने उसे कहा कि क्या इन अनावश्यक शब्दों की बोलचाल में आवश्यकता है क्या? उस का जवाब था -क्या करें साहब आदत पड़ गई है। सुझाव देने पर उस ने माना कि वह इस आदत से छुटकारा पा सकता है। मैं ने कहा कि वह आज से ही कोशिश क्यों नहीं करता है? उस ने कहा कि वह अवश्य करेगा। इस तरह की सकारात्मक पहल यदि बड़े स्तर पर हो तो समाज का माहौल परिवर्तित हो सकता है।

Taarkeshwar Giri ने कहा…

Bahut hi achhi pahel hai aapki.

kunwarji's ने कहा…

badhiya pryaas..
shubhkaamnaaye swikaar kare...

kunwar ji,

बेनामी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Anil Pusadkar ने कहा…

धन्यवाद, आपका आभारी हू आपने इस पोस्ट को सार्थक माना।आपने पोस्ट और उस पर आई टिप्पणियों को यंहा स्थान देकर अच्छा प्रयास किया है।बहुत से लोगों की इस पोसट पर और नज़र पड़ गई होगी।मेरे लिखने का उद्देश्य उपभोगतावाद मे विज्ञापन के गिरते स्तर को सामने लाना था जिसमे आपन मेरी मदद की है।एक बार फ़िर आभार आपका।

डा.अरविन्द चतुर्वेदी Dr.Arvind Chaturvedi ने कहा…

mazedaar, wah wah

jeete raho
yoo hee likhate raho

Chandan Kumar Jha ने कहा…

अच्छा लगा ।

बेनामी ने कहा…

aap kaa prayaas achcha haen bas ek suggestion haen agar aap kaments kaa krm vahi rakhtey to logo ko aur aasani hotee is paradox ko samjhane mae


post bahut achchi haen anil in vishyo par nirantar likh rahey haen aur har koi in vigyapano sae ub chukaa haen par jo lehjaa raj bhatia kaa haen wo bhi niyaahayat galat haen kyuki unko lagtaa haen "aurto sae yahii tarikaa haen baat karnae kaa " jaesa dinesh ne apnae kament mae kehaa haen so

ab aap yae psot daekhae aur phir bataye ki kyaa yae ashleel nahin haen phir agar ham iska virodh kyun nahin kartey
http://parayadesh.blogspot.com/2010/03/blog-post_17.html

wo jitnae log nayee peedhi ki aurat ko ashleeltaa pehlaanae ka zimmedaar samjhtey haen wahin kahin naaa kahin iskae sutrdhaar haen kyuki aaj kal ki betiyaan unhi ki in harkto ko deakh kar badii hui haen

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

poot ke panv paalane men najar aa rahe hain, prastuti sarahneey hai. kuchh alag si bloggin men shamil ye shaily charcha se alag bhi rakhi hai.
shubhakamanayen.

mukti ने कहा…

बहुत अच्छे राहुल,
आपने अच्छा प्रयास किया है. नये ढंग से लिखा है. मेरी आपके लिये शुभकामना है कि आप ऐसे ही अपना उत्साह बनाये रखते हुये अपनी सोच को और विस्तार दें.

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

बहुत अच्छे राहुल,
आपने अच्छा प्रयास किया है. ....

 

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