गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

'कागजमल के आंसू'......................

दोस्तों आज अनायस ही बचपन की पढ़ी हुई कविता 'कागजमल के आंसू' याद आ गई ! सरकारी स्कूल में छुट्टी के घर वापस आते समय सभी गाते हुए आते थे ! कागज़ है ही ऐसी चीज की उसके वगैर जीवन कल्पना ही नही होती है ! पुराने जमाने के कीमती ग्रन्थ , पुराण , आदि कागज़ की वजह से ही तो हमारे पास है ! कागज़ अपनी अभिव्यक्ति को ज़ाहिर करने का माध्यम है ! 
कागज़ की महिमा ज्यादा क्या बताना, बच्चा बच्चा जानता है ! और समय तथा जगह भी नही है ! कागज़ का सबसे प्रयोग इजिप्ट के निवासियों के द्वारा करीब ३५०० ईसापूर्व किया गया था ! और आज भी बदस्तूर जारी है ! और जारी रहेगा ! जब से कागज़ पर मुद्रा छपने का चलन हुआ तब इसकी अहमियत और बढ़ गई है !
आज यहाँ पर कागज़ का जिक्र करने का मेरा मुख्य उद्देश्य ये है कि हमें कागज़ के सदुपयोग कि कितनी बड़ी जरूरत है ! सभी को पता है कि कागज़ को बनाने के लिए पेड़ों को काटना पड़ता है ! और पेड़ ही हमारे सबसे बड़े मित्र है ! और कागज़ भी जरूरी है ,लेकिन कागज़ का दुरप्रयोग जितना हो रहा है ! उसका सीधा प्रभाव हमारे पर्यावरण यानि हमारे ऊपर पड़ता है ! 
कई ऐसी जगहें है , जहाँ हम कागज़ कि जगह किसी और का उपयोग करके काम चला सकते है ! आज किसी स्कूल में जाते है, तो वहां पर काफी मात्रा में रद्दी पड़ी मिलती है , इसके लिए अध्यापकों को ही पहले बच्चों को कागज़ के उत्पादन के बारे में बताना होगा तथा रद्दी कागज़ को पुनःचक्रित करने की विधि भी सिखानी होगी ! 
कागज़ का दुरप्रयोग स्कूलों से ज्यादा कंपनियों में देखा जा सकता है !
तो कागज़ हमारा दोस्त ,तो हमें भी उससे दोस्ती करनी चाहिए !

1 टिप्पणियाँ:

संगीता पुरी ने कहा…

अच्‍छा लिखा....

 

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