मुझे हिंदी में ब्लोगिंग करते हुए कम से कम एक साल तो हो ही गया होगा| इस एक साल में मैंने बहुत कुछ सीखा है | आप लोगों का भरपूर प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन मिला | हिंदी ब्लोगिंग की दुनिया के बारे में मेरा जो भी अनुभव है ,जैसे कैसे नए पाठक एवं नए लेखक जोड़े जाये ? मैं यहाँ नववर्ष की पूर्व संध्या पर कहना चाह रहा हूँ |
हिंदी ब्लोगिंग के बारे में कुछ तथ्य मेरे अनुभव किये हुए है , जो मैंयहाँ लिख रहा हूँ |
Øयहाँ ज्यादातर पाठक , लेखक (ब्लॉगर) होते है | मतलब हम लोग ही एक दूसरे को पढते है , टिप्पणी कर लेते है |
Øज्यादातर लोग यह समझते है कि हिंदी ब्लोगसिर्फ बड़े लेखक, कवि, या समाजशास्त्री लिखते है |
Øयहाँ ब्लॉग से कमाई करने के तरीके ना के बराबर है |
Øज्यादातर युवा लेखक (ब्लॉगर), हिंदी में लिखने में अपनी बेज्जती( फ्रेंड्स के बीच) समझते है |
अब कैसे ये सारे तथ्यों(या समस्यायों) को हल करके हम अपनी हिंदी ब्लोगिंग क्षेत्र को इंटरनेट पर बहुचर्चित कर सकते है ,इसके बारे मैं कुछ अपने विचार साझा करना चाहता हूँ | जैसे कि
Øऑरकुट हमारे देश में काफी लोकप्रिय है , लगभग हर युवा जो इंटरनेट का उपयोग करता है , उसका अकाउंट ऑरकुट पर जरूर होगा | इसलिए ये प्रचार करने का बहुत बढ़िया तरीका हो सकता है | औरलगभग हम सभी (ब्लॉगर) भी ऑरकुट का यूज करते है | कई लोग इसके जरिये भी अपने ब्लॉग को नये दोस्तों तक पहुंचाते है | कुछ अप्लिकेशन है जैसे ट्विटकुट (Twitkut) जो कि आपके ट्विटर पर किये गए ट्विट (जोकि आपके ब्लॉग के बारे में भी हो सकता है ) को ऑरकुट पर अपडेट कर देता है | एक बात और अपने ब्लॉग के साथ हम अगर ब्लोग्वानी और चिटठाजगत के बारे में भी लोगो को बताये तो हिंदी ब्लोगिंग को और भी पाठक ,ब्लॉगर मिलेगे |
Øहिंदी दैनिक भी इसमे बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते है. और कुछ निभा भी रहे है | उनको अपने लेखो में ब्लोग्वानी और चिट्ठाजगत के बारे में लिखना चाहिए | नया ब्लॉग कैसे बनाते तथा कैसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाए इसके बारे में अपने लेखों में लिखना चाहिए |
Øकई बड़ी हस्तियाँ(अभिताभ बच्चन, आमिर खान ) जो कि इंग्लिश में लिखते है , को भी कम से कम एक प्रति हिंदी में छपवानी या खुद लिखनी चाहिए |
Øस्कूल , कॉलेज या फिर कम्पूटर संस्थान को भी अपने छात्रों को हिंदी में लिखने (ब्लॉग) के बारे में बताना चाहिए |
Øट्विटर पर अपना फ्रेंड्स सर्कल बढ़ाकर , हिंदी ब्लॉग का प्रचार कर सकते है |
ये कुछ उपाय मेरे तरफ से है | इनमे बहुत से और तरीके भी हो सकते है | आपके टिप्पणी का इंतज़ार रहेगा , टिप्पणी में कोई आप अपना तरीका बताएं | जिससे हिंदी ब्लॉग जगत नए साल में नयी बुलंदियां छुए |
आज जब मैं हिंदी चिट्ठों की दुनिया में विचरण कर रहा था | तब अचानक संगीता पुरी जी के चिट्ठे पर पहुंचा | वहाँ मुझे एक बढ़िया पोस्ट तो पढने को मिली ही , साथ लवली कुमारी जी और संगीता जी के बीच धर्म और विज्ञान पर एक स्वथ्य एवं सार्थक बहस पढने को मिली | ऎसी बहस ब्लॉग में मौजूद टिप्पणी कि सुविधा को और भी सार्थक बना देता है | वास्तव मर टिप्पणियों के जरिये ऐसी ही सार्थक बहस की जरूरत है | अगर आप ये बहस पढने से चूक गए है , तो लीजिए यहाँ प्रस्तुत है :
लवली कुमारी / Lovely kumari ने कहा:
संगीता जी आप कुछ बातों से सहमत होते हुए ..कुछ से असहमत होने की सुविधा चाहूंगी . धर्म का अर्थ बहुत व्यापक है इसे संप्रदाय के अर्थ में लेना कुछ ठीक नही लगता. आपने ठीक कहा की विदेशी आक्रमणों के कारन भारतीय पुरातन ज्ञान -विज्ञान को बहुत हानि पहुंची है. जिस विज्ञान की बात आप कर रही हैं वह वस्तुतः समाज के सम्पन्न वर्ग द्वारा फैलाया गया आधे - अधूरे ज्ञान का मायाजाल है. वास्तविक विज्ञान को इस डर से लोगों के सामने आने नही दिया जाता की कहीं वे प्रगति का मार्ग दिखा कर लोगों को दुःख तकलीफों से मुक्त न कर दे. वास्तविक विज्ञान वह है जिसके आधार पर हम कारण और परिणाम में स्पस्ट सम्बन्ध बैठा सकें. इस मायाजाल रूपी अधकचरे ज्ञान से उस वर्ग को लाभ पहुंचेगा जिस के पास सुविधाओं की कोई कमी नही है. रही बात प्रकृति और ईश्वर की वह कोई ऐसा विषय नही जिसे किसी ११-२०० शब्द की टिप्पणी में निपटाया जा सके..उसपर लिख ही रही हूँ ..आगे भी लिखती रहूंगी. रही बात परंपरा की तब सती प्रथा, मानव वध(बलि) और बहुपत्नी प्रथा भी परम्पराएँ थी ..पर वह कितनी सही थी आप भी जानती हैं. हर बार ज्ञान नई दृष्टि, नए रूप में सामने आता है उसे पुराणी व्याख्याओं से आगे बढ़ा कर देखा जाता है , न की अस्वीकार करके ऐसे हम अपना ही नुकसान करते हैं..खैर ..
अच्छा लगता है जब आप जैसे मित्र पूर्वाग्रह छोड़ कर चर्चा के लिए तैयार होते हैं. कोई बात बुरी लगी हो तब क्षमा कीजिएगा. आपकी सहृदयता के कारण स्पस्ट कहने का मन हुआ.
संगीता पुरी जी ने कहा:
लवली जी .. बहुत अच्छा लगा कि आप मेरे ब्लॉग पर आकर इतनी लंबी टिप्पणी लिख गयीं .. यही मैं चाहती हूं कि ब्लॉगिंग की दुनिया में हमेशा स्वस्थ बहस हो .. पर आपका ये भ्रम है किवास्तविक विज्ञान को इस डर से लोगों के सामने आने नही दिया जाता की कहीं वे प्रगति का मार्ग दिखा कर लोगों को दुःख तकलीफों से मुक्त न कर दे.दुनिया में हर वक्त बल, बुद्धि और व्यवासायिक ज्ञान में से कुछ भी न रखने वाले लोग होते हैं .. जिनके पालन पोषण के लिए उन्हे सहारा देने की आवश्यकता होती है .. वे खुद रास्ता नहीं बना सकते .. पर दिखाए रास्ते पर तल्लीनता से चल सकते हें .. आज की दुनिया में भी ऐसे व्यक्ति हैं .. पर उनमें से जो धन संपन्न हैं उनकी स्थिति ठीक है .. कोई ट्रेनिंग ले सकते हैं वे .. बाकी के कष्ट की सीमा नहीं .. उनके लिए आज के विज्ञान ने कोई व्यवस्था नहीं की है आज का विज्ञान 'survival of the fittest' को मानता है .. एक अंधी दौड लगाए जा रहे हैं लोग .. जो मजबूत है वो आगे बढेगा वो जितेगा जबकि जो कमजोर है ,गिरकर मर जाए .. पर धर्म ऐसा नहीं कहता .. वह हर स्तर के लोगों की खूबियों से फायदा उठाकर पृथ्वी के समस्त चल और अचल के कल्याण की बात करता है .. समाज के विभिन्न समुदायों को अलग अलग प्रकार के विज्ञान की जानकारी नहीं दी गयी थी .. तो बिना गणित और विज्ञान के लोहार , सुनार , पीत्तल का काम करने वाले , कपास के धागे निकालनेवाले , रेशम के डोर निकालनेवाले , शराब बनाने वाले, जूत्ते बनाने वाले या अन्य इतने तरह के कलाकार ने जिन जिन विधियों से अपनी अपनी कला का प्रदर्शन किया .. उसमें विज्ञान नहीं था क्या .. यदि आप मानती है कि आज ही सिविल इंजीनियर हैं .. तो आपकी गलतफहमी है .. इतिहास गवाह है कि प्राचीन काल में जो भी बडे बडे इमारत , मंदिर , मस्जिद और पुल बने .. वे कलाकारों के ही दिमाग की ऊपज हैं .. परेशानी तब शुरू हुई जब उच्च वर्ग ने इन कलाओं को महत्व देना कम कर दिया .. और चूंकि उच्च वर्ग के हिस्से में अनाज थे .. इसलिए कलाकारों को शोषण का शिकार बनना पडा .. कम मजदूरी देकर उनसे काम करवाए जाते रहे .. जिन्हे कालांतर में शूद्र कहा जाने लगा .. उन्हें मैं प्राचीन भारत का बडा कलाकार मानती हूं !! सती प्रथा, मानव वध(बलि) और बहुपत्नी प्रथा तब आयी समाज में जब धर्म के नाम पर ताकतवर ने कमजोरो का शोषण करना शुरू कर दिया था .. हमेशा से गुंडो को समाज में उत्पात मचाने का एक बहाना चाहिए होता है धर्म एक बहाना बन गया होगा .. जब सामाजिक राजनीतिक स्थिति के कमजोर पडने से पति के मरने के बाद पत्नी को राजाओं या उनके आदमियों द्वारा उठाकर ले जाया जाता हो .. तो जीवनभर झेलने से एक बार मर जाना क्या बुरा रहा होगा .. जिस व्यक्ति के संतान न होने से मजबूत लोग उसकी संपत्ति को अपने में में मिला लेते हो .. उसका संतान के लिए दूसरा या चौथा विवाह करना क्या नाजायज होता होगा .. धर्म की छिछली जानकारी रखनेवालों के लिए ही धर्म खराब हो जाता है .. पर मसेहनजोदडो और हडप्पा की खुदाई में हम सारी व्यवस्था को पाते हैं .. ये सब व्यवस्था धर्म के क्षरा ही संभव है .. बस धर्म के नाम पर कमा रहे बेईमान लोगों को अलग करना होगा ।
लवली कुमारी /जी ने कहा .
संगीता जी मैंने कभी ऐसा नही कहा की विज्ञान सिर्फ आज ही है(पर हर बार कार्य पहले होता है व्याख्या बाद में ) ...बल्कि सच यही है प्राचीन विज्ञान की दुर्दशा होनी आरम्भ हुई जब चंद मुठ्ठी भर लोगों ने पुरे समाज पर कब्ज़ा कर लिया. उससे पहले हमारा प्राचीन ज्ञान इतना समृद्ध था की ६ - ७ वीं सदी में ब्रह्मगुप्त जैसे गणितज्ञों ने पृथ्वी की परिधि की गणना लगभग सही ही बताई थी.मुझे भारतीय ज्ञान पर कोई संदेह नही कृपया यह भ्रम आप मन से निकल दे. पर एक साख्य दर्शन भी हुआ करता था हिन्दू धर्म में उसे ब्राह्मणों ने किस कारण अछूत कर रखा है उसका कारण आप बताएंगी ? क्या सिर्फ इसलिए की वह निरीश्वर वादी दर्शन था..? मैं भारत के ज्ञान और परम्परा की इज्जत करती हूँ, इसलिए नही की मैं भारतीय हूँ इसलिए की हम किसी वक्त समकालीन सभ्यताओं से बहुत आगे थे...पर ऐसे किसी विषय का कोई महत्व नही समझती जो खुद को ही स्पस्ट न कर सके. स्वर्ग- नरक के नाम पर सिर्फ अग्यानिओं को डराया जा सकता है ऐसा नही होता तब बाबाओं के मठ से अरबों की संपतियां और अवैध संबंधों की लम्बी लम्बी कहानियां बाहर नही आती. न ही वह संतोष होता जिसके आधार पर साधारण आदमी का खून चूसकर भी ईश्वर पर भरोसाकरने की सलाह दी जाती है.
और हाँ हड्डपा और मोहेंजोदड़ो के लोग प्रकृति और प्रजनन शक्ति के पूजक थे(वहां से प्राप्त मुहरों के अनुसार ). आज मनुष्य जीवित है तो सिर्फ इसलिए की उसने प्रकृति के विरुद्ध जाकर खुद के स्थान ढूंढा प्रकृति दुरह है और उसे साधने का नाम ही विज्ञान है. हम जीवित है क्योंकि हमने प्रकृति से लड़ना सिखा. अगर की परिवार जैसी व्यवस्था न होती (ध्यान दीजिएगा की भाई -बहन जैसा कोई रिश्ता प्रकृति में नही होता ) हम अतः प्रजनन कर के कब के मर खप गए होते. यह पुर्णतः मानव निर्मित व्यवस्था है जिसमे हम जी रहे हैं और इसके चलने और इसके नियमो के संसोधन के लिए हमे किसी दैवीय शक्ति की जरुरत नही है.
ब्लॉगिंग की दुनिया से जुडने के बाद ज्योतिष या धर्म के क्षेत्र में शायद पहली बार स्वस्थ मानसिकता से बहस के लिए आप तैयार हुई हैं .. अभी तक मुझे या तो बाहबाही मिली या फिर आलोचना .. पर विज्ञान सिर्फ आज ही है(पर हर बार कार्य पहले होता है व्याख्या बाद में ) आपकी ये बात समझ में नहीं आयी ... पर किसी एक युग में किसी एक घटना से किसी धर्म को खराब नहीं माना जा सकता है .. आज भी साहित्य , ज्योतिष , राजनीति या अन्य क्षेत्र में शीषर्स्थ स्थानों पर बैठे लोग नए लोगों या विचारों को महत्व नहीं देना चाहते .. अधिक लोग जिस विचारधारा को मानते हैं .. उस युग में उसी की जीत होती है .. पी एन ओक पूरे जीवन इतने रिसर्च किए .. पर वे सही थे या गलत .. इसकी जांच भी हुई .. अधिक इतिहासकार जो कह रहे हैं .. वही सही होगा .. ये तो आज के युग की की बात है .. उतने पुराने एक उदाहरण में आप क्यूं जाती हैं ??
बात पुराणी चीजो की आपने आरम्भ की इसलिए मैंने वहां का परिप्रेक्ष्य दिया..और 'survival of the fittest' की अवधारणा विज्ञान "के लिए" प्रतिपादित नही है बल्कि प्रकृति के चयन को देखकर सामने आई है. (पर हर बार कार्य पहले होता है व्याख्या बाद में ) - इसका अर्थ यह है की पहिए की खोज पहले हुई गति का नियम बाद में आया, पर उसका सत्यापन तो हुआ न. कृपया व्यवस्था गत खामिओं के लिए वैज्ञानिको को दोष न दें ..अगर हमने उनके खोजों का गलत उपयोग किया है जिम्मेवार हम है विज्ञान नही.
पुर्णतः मानव निर्मित व्यवस्था है जिसमे हम जी रहे हैं बिल्कुल सहमत हूं आपसे .. इसमें संशोधन के लिए दैवीय शक्ति की आवश्यकता भी नहीं है .. इससे भी सहमत हूं .. पर प्रकृति के विरूद्ध कहां जा पाएंगी आप .. आपको बुद्धि प्रकृति ने ही दी है .. जब तक प्रकृति का साथ मिलता है .. लोगों को उसका महत्व समझ में नहीं आता .. जिस प्रकार पैसेवाले घर में जन्म लेनेवाले लोग पैसों को महत्व नहीं देते .. पर जैसे ही प्रकृति का साथ नहीं मिलता है .. उसके महत्व को स्वीकारते हैं .. मैने अपने जीवन में कितनो को देखा है ऐसा करते .. क्या गलती थी रूचिका गिरहोत्रा की .. या अभी भी उससे भी बदतर जीवन जी रही हजारो हजार लडकियों की .. क्या आप दावा कर सकती है कि पूरे नौ महीने डॉक्टर के देख रेख में रहने के बाद भी बालक असामान्य शारीरिक बनावट लेकर नहीं आ सकता है .. इस दौरान सोनोग्राफी की छूट नहीं दी जाए तो !!
और मैंने कभी किसी चीज के प्रति अस्वस्थ्य मानसिकता नही रखी..पर लोग चर्चा करना कहाँ चाहते हैं? आगे जो लोग आएँगे या की आपकी वाहवाही और मेरी आलोचना करेंगे या फिर मेरी वाहवाही और आपकी आलोचना. खुद कुछ कहेंगे नही बातों का रुख मोड़ने की कोशिश कि जाएगी. ऐसे माहौल में मैं सिर्फ आपके कारण ही चर्चा के लिए तैयार हुई हूँ इसमें आपको कोई संदेह नही होना चाहिए.
'survival of the fittest' प्रकृति का नियम नहीं है .. यदि वह प्रकृति का नियम होता तो सब जीवो का विनाश युगों पूर्व हो गया होता .. एक एक जीव को उसकी रक्षा के लिए प्रकृति से खास खास शारीरिक विशेषताएं न दी गयी होती .. आज जो प्रजातियां दुनिया से विलुप्त हो रही हैं .. वे मानवीय हरकतों की वजह से !!
आपको बुद्धि प्रकृति ने ही दी है- मोहतरमा, इसमे जरा अंर्तविरोध है मनुष्य को प्रकृति ने बुद्धि दी की प्रकृति प्रदत्त डरों और और जीने के लिए कभी न मरने वाली इच्छा और अंत तक संघर्ष करने की हिम्मत ही ऐसी ही चीजों थी जिसने मनुष्य में चेतना अथवा बुद्धि भरी. वे जंतु जो सामाजिक नही है जिनमे कोई समष्टि भावना नही है उनमे चेतना नही होती उदहारण के लिए आप पशु पक्षिओं को लें. चेतना मानव के सामाजिक होने का वरदान (कहा जाय तो बाई प्रोडक्ट)है.जो किसी प्रकृति प्रेरणा से नही वरन उसके डरों से अकेले न लड़ पाने के कारण अपने जैसे और सजीवों(human being) से मिलकर मुकाबला करने की प्रवृति(या जरुरत ) के कारण उपजा है. और विनाश तो हुआ है संगीता जी विशालकाय हांथी मैमथ का डाइनासोर्स का ..मानव का भी होगा इसमें कोई संदेह नही है...अगर की मानव अपनी संख्या अंधाधुंध तरीके से बढ़ता रहा जितने की साधन उपलब्ध नही है..यह न भी हुआ तब भी अगर लोग संप्रदाय, जाति और रंगभेद जैसी कुरीतिओं से बचे रह गए तब सूरज और हमारे सौर परिवार की भी आयु निश्चित है...और हम तब तक बैठ कर सिफ मौत का इन्तिज़ार कर सकते हैं. ----- जिस प्रकार पैसेवाले घर में जन्म लेनेवाले लोग पैसों को महत्व नहीं देते .. पर जैसे ही प्रकृति का साथ नहीं मिलता है- आपकी जानकारी के लिए मैं ने कई साल पार्श्व नाथ के बीहड़ में आदिवशिओन के लिए काम किया हैं बड़ी भी वहीँ हुई हूँ .
देखिए लवली जी .. जहां तक विज्ञान की बात है .. हम दोनों एक मत है .. यदि मैं विज्ञान का थोडा विरोध करती हूं तो इस बात से कि विज्ञान को अपने विकास का एक कदम बढाने से पहले उसके भविष्य में होनेवाले प्रभाव को सोंच लेना चाहिए , जिसे वह नहीं करता .. पर धर्म और ज्योतिष के मामलों में हमारे मध्य इतनी मतभिन्नता है कि एक बैठकी में तो स्पष्ट होने से रही .. इसलिए मैं यह कह दूं कि एक ही माता पिता के दो संतान भिन्न भिन्न बुद्धि के होने का कारण भी प्रकृति का ही नियम है .. तो आप नहीं मानेंगी .. आपका कहना है कि मनुष्य ने अपनी बुद्धि स्वयं विकसित की है .. यह कहना वैसे ही हास्यास्पद है जैसा कि सर्प कहे कि विष मैने अपने शरीर में खुद भरा .. पक्षी कहे कि मैने उडना स्वयं सीखा !!
पुनः कहूँगी - चेतना मानव के सामाजिक होने का वरदान (कहा जाय तो बाई प्रोडक्ट) है संगीता जी, पक्षी और सर्प का उड़ना और डसना जैविक गुण है जैसे मनुष्य का खाना -पीना और चलना...चेतना अथवा बुद्धि कोई जैविक गुण नही है. वह सामाजिक गुण है. पक्षिओं को हमारी तरह अपने अस्तित्व को लेकर चिंतित नही होना पड़ता है. मैं भी प्रकृति विरोधी नही हूँ पर प्रकृति के नाम पर रहस्य बनाये रखने की विरोधी हूँ. उस व्यवस्था का विरोध करें जिसने मानव के नवीनतम ज्ञान से कोशों दूर सड़ी और गंधाती हुई शिक्षा पद्धति का निर्माण किया है इस का आरोप विज्ञान पर न लगावें (जो उसने किया ही नही)...और मुझे कोई शक नही की यह सब सिर्फ अधिसंख्यक निर्धन मनुष्यों को प्रताड़ित करने के लिए किया गया सुनियोजित उपक्रम है. अंततः "तमसो माँ ज्योतिर्गमय " यही मनुष्य का स्वभाव होना चाहिए. सार्थक चर्चा का धन्यवाद.
कल एक काम और मैंने बढ़िया किया | मेरा एक दोस्त जोकि इंग्लिश में ब्लोगिंग करता था| जब उसे हिंदी ब्लॉग दुनिया से भेंट करवाई, तो उसके मुंह से निकल ही पड़ा, "वाह ...यहाँ का तो नज़ारा ही कुछ और है | खैर इसको ब्लोगिंग में ज्यादा दिन नहीं हुए है | पर मैंने इन्हें हिंदी ब्लोगिंग के बारे में बताया और राजी कर ही लिया | अब ये अपने ब्लॉग कि एक हिंदी कॉपी (संस्करण) भी लिखते है| ये उत्तराखंड के रहने वाले है, इसलिए कुछ उच्चारण कि दिक्कत हो रही है, पर मैंने मदद करने का वायदा किया | आप भी एक बार इनसे भेंट कर लीजिये | ब्लोग्वानी और चिट्ठाजगत पर आवेदन कर दिया है | शामिल होने का इंतज़ार है |
नरेगा मे खुलेआम धांधलियाँ सामने आ रही है जिनमे जाँब कार्ड मे मनमानी,मजदूरों को पूरा मेहनताना ना मिलना शामिल है वैसे तो इस योजना मे बहुत सी अच्छाईयाँ है,पर इसमे पारदर्शिता लाने के प्रयास नाकाफी है ये योजना गांव के कुछ दबंग लोगो के लिये आय का नया स्त्रोत बन गयी है,इसके उदाहरण आए दिनो मिल रहे है कुछ दिनों पहले ,नरेगा के तहत मजदूरों के जाँब कार्ड न बनाने का विरोध करने पर कांग्रेस नरेगा प्रकोष्ठ के प्रभारी श्रवण कुमार सिंह की घर के बाहर सोते समय गोली मारकर हत्या कर दी गयी यह बात फर्रुखाबाद के दुबरी गांव की है हत्या का मुख्य अभियुक्त (गांव का ही पुर्व प्रधान योगेंद्र उर्फ गुड्डू)पहले भी एक दलित की दिनदहाडे हत्या के जुर्म मे सजा काट चुका है गांव का वर्तमान प्रधान(मात्र नाम का प्रधान) जो कि दलित है,का पूरा काम योगेंद्र उर्फ गुड्डू दबंगई(जबर्दस्ती)से देख रहा था हत्या से पुर्व श्रवण कुमार का योगेंद्र उर्फ गुड्डू से मजदूरों के नाम जाँब कार्ड में न भरने को लेकर विवाद हो गया था वो चाहता था कि मजदूरों का जाँब कार्ड न बने जिससे कि वो मनमानी कर सके जिसका कि श्रवण कुमार नरेगा प्रभारी होने के नाते विरोध कर रहे थे तथा श्रवण कुमार ने इसकी शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों से भी की पर इसका कोई सकारात्मक जबाव नही मिला इसी रंजिश मे श्रवण कुमार को अपनी जान गंवानी पडी
हालाकि जनता के भारी दबाव के कारण पुलिश ने अभियक्तों को गिरफ्तार जरूर कर लिया है,पर योगेंद्र उर्फ गुड्डू जेल मे रहते हुये भी श्रवण कुमार के परिवार को लगातार परेशान कर रहा है उनके परिवार पर अभी भी जानलेवा हमला होते है
मै इस मंच के माध्यम से यह बात आला अफसरो तक पहुंचाना चाहता हूँ खासकर राहुल गांधी तक, क्योकि मुझे यकीन है वे इस मामले को जरूर देखेगे क्योंकि ये मामला सिर्फ श्रवण कुमार या श्रवण कुमार के परिवार का नही है,पूरी नरेगा योजना से जुडा हुया हैजाँब कार्ड से संम्बधित कोई एक पारदर्शक विकल्प तलाशने की जरूरत है मैं यह बात राहुल गांधी तक पहुंचाना चाहता हूँ,पर मुझे कोई ऐसा तरीका नही मालूम कि मै उनसे मिल सकु,इसलिये आप लोग मेरी इसमे मदद करें
दोस्तों आज अनायस ही बचपन की पढ़ी हुई कविता 'कागजमल के आंसू' याद आ गई ! सरकारी स्कूल में छुट्टी के घर वापस आते समय सभी गाते हुए आते थे ! कागज़ है ही ऐसी चीज की उसके वगैर जीवन कल्पना ही नही होती है ! पुराने जमाने के कीमती ग्रन्थ , पुराण , आदि कागज़ की वजह से ही तो हमारे पास है ! कागज़ अपनी अभिव्यक्ति को ज़ाहिर करने का माध्यम है !
कागज़ की महिमा ज्यादा क्या बताना, बच्चा बच्चा जानता है ! और समय तथा जगह भी नही है ! कागज़ का सबसे प्रयोग इजिप्ट के निवासियों के द्वारा करीब ३५०० ईसापूर्व किया गया था ! और आज भी बदस्तूर जारी है ! और जारी रहेगा ! जब से कागज़ पर मुद्रा छपने का चलन हुआ तब इसकी अहमियत और बढ़ गई है !
आज यहाँ पर कागज़ का जिक्र करने का मेरा मुख्य उद्देश्य ये है कि हमें कागज़ के सदुपयोग कि कितनी बड़ी जरूरत है ! सभी को पता है कि कागज़ को बनाने के लिए पेड़ों को काटना पड़ता है ! और पेड़ ही हमारे सबसे बड़े मित्र है ! और कागज़ भी जरूरी है ,लेकिन कागज़ का दुरप्रयोग जितना हो रहा है ! उसका सीधा प्रभाव हमारे पर्यावरण यानि हमारे ऊपर पड़ता है !
कई ऐसी जगहें है , जहाँ हम कागज़ कि जगह किसी और का उपयोग करके काम चला सकते है ! आज किसी स्कूल में जाते है, तो वहां पर काफी मात्रा में रद्दी पड़ी मिलती है , इसके लिए अध्यापकों को ही पहले बच्चों को कागज़ के उत्पादन के बारे में बताना होगा तथा रद्दी कागज़ को पुनःचक्रित करने की विधि भी सिखानी होगी !
कागज़ का दुरप्रयोग स्कूलों से ज्यादा कंपनियों में देखा जा सकता है !
तो कागज़ हमारा दोस्त ,तो हमें भी उससे दोस्ती करनी चाहिए !
कल गणतंत्र दिवस है ! आज हम स्वतंत्र तथा विश्व के प्रभावशाली देशों की सूची में अहम् स्थान पर है ! हमें भारतीय होने पर गर्व है ! आज हमारे कदम चाँद पर पहुँच चुके है ! इस मौके पर मुझे अमरकवि अवतार सिंह 'पाश ' के चाँद पंक्तियाँ याद आ रही है ! भारत मेरे सम्मान का सबसे महान शब्द , जहाँ कहीं भी प्रयोग किया जाए, बाकी सभी शब्द अर्थहीन हो जाते है ! ये नही है कि हमारे यहाँ अब राजसत्ता से भ्रष्ठाचार ,नौकरशाहों के कदाचार, घूसखोरी ख़त्म होगई है !काफी है , तथा बढ़ ही रही है ! इसे मिटाना तो हमीं को है ! लेकिन यहाँ मैं उस जिजीविषा की चर्चा करना चाहूँगा, जोकि भारत को जिन्दा बनाए रखती है ! जाने कितने आए कितने गए , लेकिन हमारे सभ्यता जो थी ,वही है ! हाँ कुछ परिवर्तन तो संसार का नियम है ! मुग़ल, अंग्रेज सभी आए !हामारे यहाँ 'स्लमडॉग मिलेनियर' की लाखों कहानियाँ मौजूद है !पर हमारे यहाँ के भूखे, मज़लूम विध्वंस नही करते है ! इसका मतलब ये नही कि हम उनकी सब्र कि सीमा टूटने का इंतज़ार करे ! उन्हें उनके मौलिक अधिकार देने होगे ! यहाँ कविवर नीरज की ये पंक्तियाँ गौर करने के लायक है ! तन की हविश मन को गुनहगार बना देती है , बाग़ के बाग़ को बीमार बना देती है ! भूखें पेटों को ओ देशभक्ति सिखाने वालों, भूंख इन्सान को गद्दार बना देती है !! मैं इस लेख के माध्यम से इतना कहना चाहता हूँ ! कि भारत में अपने बल पर दुनिया को दिखाने कि ताकत है , और कई बार दिखाई भी है ! इसी देश में मोहन दास पैदा होकर बापू कहलाया !अंत में 'पाश' कि ही चंद पंक्तियाँ दे रहा हूँ .... ।हम लड़ेगे साथी , उदास मौसम के लिए , हम लड़ेगे साथी, गुलाम इच्छायों के लिए , हम चुनेगे साथी .... जय हिंद दोस्तों
आज हम क्या नही कर सकते है, २००९ हमारी दम तथा जज्बे की परीक्षा लेने के लिए तैयार खड़ा है ! अब्दुल कलाम के सपने को पूरा करने में ३६५ दिन और कम हो गए है ! आज हम जिस गति से विकास कर रहे है !उसको देखकर हर भारतवासी की आंखों में एक चमक देखी जा सकती है ! १९९८ में जब हम पर तमाम तरीके के प्रतिबंद लगा दिए गए थे, तो हमारा क्या क्या बिगाड़ लिया, एक बात और हुई हम अपनी टेक्नोलोजी पर निर्भर होना सीख गए ! आज हमारे देश की सेलुलर फ़ोन कंपनिया दुनिया में अपना लोहा मनवा रही है ! टाटा पहले ही कोरस का अधिग्रहण करके सावित कर चुकी है ! आज गांव गांव फ़ोन पहुँच गया है ! सूचना प्रोधौगिकी के क्षेत्र में हमे अपनी उपलब्धियों के बारे बताने की जरूरत नही है ! विप्रो, इन्फोसिस, सत्यम आदि नामी कंपनिया हमारे पास मौजूद है !
एक बात और भारत का दिल गांवों में बसता है !गांव में अभी काफी कुछ करना है ,हमें खेती में उत्पादकता बढानी है ! मुख्य बात किसानो को उनका हक़ उन्हें पूरा पूरा मिले ,बस गांव की आर्थिक स्थिति संभलते ही शहरों की तरफ़ पलायन तो रुकेगा ही तथा गांव में भी रौनक आ जायेगी ! ये बात तो है कि आज लोगों को सरकारी व्यवस्थायों तथा तंत्र से विश्वास तो कम हो गया है ! लेकिन हमारे पास दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है ,बस इसे हमको पोजिटिव सोच के जरिये ,आम लोगों के बीच भरोसा जगाना है ! सरकारे भ्रष्ट रही है लेकिन हमारे पास बहुत बड़ी शक्ति है ! नए बर्ष में नई सोच ,प्रसाशन के कुसशन के खिलाफ कोसना नही है ,करना है ,और हम क्या नही कर सकते है ! हम क्या नही कर सकते है !! जय हिंद