आईये हम, आप भी उस गौरवमयी भाषण को सुनते है | ये भाषण उनकी ही आवाज में है |
और
आल्हा हमारी चौपालों का श्रृंगार रहा है | आल्हा को सुनने का एक अलग ही अनुभव होता है | ये वीरगाथा काल में ही लिखा गया था |
ये सुनिए लोकप्रिय गायक लल्लू बाजपेयी की आवाज में ...
आल्हा ,ऊदल एक वीर के साथ स्वामिभक्त राजपूत की बढ़िया मिसाल है| आल्हा और ऊदल परमालदेव चन्देल राजा (महोबा)के दरबार के सम्मनित सदस्य थे। यह दोनों भाई अभी बच्चे ही थे कि उनका बाप जसराज ने एक लड़ाई में वीरगति पायी । राजा को अनाथों पर तरस आया, उन्हें राजमहल में ले आये और मोहब्बत के साथ अपनी रानी मलिनहा के सुपुर्द कर दिया। रानी ने उन दोनों भाइयों की परवरिश और लालन-पालन अपने लड़के की तरह किया। जवान होकर यही दोनों भाई बहादुरी में सारी दुनिया में मशहूर हुए।
जैसा पूरा भारत तो इस फैसले पर नज़र लगाये हुए था ही साथ ही विश्व स्तर पर भी इसकी चर्चाएं चल रही थी | क्योंकि ये स्वतंत्र भारत का एक महत्त्वपूर्ण फैसला है | चलिए देखते है ..अंतर्राष्ट्रीय मीडिया इस फैसले पर कैसी प्रतिक्रियाएं दी हैं :
Division of India holy site ordered …..Aljazeera
Mosque verdict keeps India on security tenterhooks……Khaleej Times
India court says mosque site to be divided …..MSNBC
India court says mosque site to be divided-TV -----Dawn (Pakistan)
Muslims, Hindus, Akhara declared joint holders of Babri Mosque----The News (Pakistan)
अंत में एक मेरी अपील, “Its a great opportunity for all of us to show the rest of the world that we are united.”
हम्हें “अनेकता में एकता” वाली बात जो हमेशा से ही भारत के लिए पहचान है ..उसको साबित करना है | न ही किसी की हार न ही किसी की जीत …..किसी भी तरह की अफवाह न जाईये |
यहाँ मैं एक बार फिर सभी लोगों से अपील करता हूँ …कि वे किसी भी तरह की अफवाह में न जायें | यहाँ कुछ लोगों की टिप्पणियाँ में साझा कर रहा हूँ |
जहां मुस्लिम नमाज पढ़ते थे वो मुस्लिमों को दिया जाए. --जस्टिस अग्रवाल की राय
बाबर ने ढांचा बनवाया लेकिन ये इस्लाम के उसूलों के ख़िलाफ़ था इसलिए इसे मस्जिद नहीं माना जा सकता. ---कोर्ट
लोग शांति बनाए रखें और लोग अफ़वाहों पर ध्यान न दें.---मायावती मुख्यमंत्री यूपी
इस मामले में भगवान राम का व्यक्तित्व कतई किसी विवाद में नहीं है जिन्हें अल्लामा इक़बाल जैसे कवियों ने इमाम-ए-हिंद की पदवी दी थी. ये विवाद बाबर के शासन से भी संबंधित नहीं है जिसने इब्राहीम लोधी को हराकर देश पर अपना शासन स्थापित किया था. -----मुस्लिम वकीलों का बयान
ये फ़ैसला बैलेंसिंग एक्ट है. मस्जिद का बंटवारा नहीं हो सकता. मुस्लिम भाई सब्र करें. हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. कासिम रसूल इलियास ( मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड)
इस फ़ैसले से आनंद होना स्वाभाविक है लेकिन सभी को शांति के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त करना चाहिए और ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे कि किसी के दिन को ठेस पहुँचे| -----मोहन भागवत (आरएसएस)
और अगर आप ओरिजिनल कॉपी पढना चाहते है , तो नीचे लिंक दे रहा हूँ |
decision on ayodhya verdict original copy ayodhya verdict original copy-part 2 Ayodhya verdict original copy part-3 ayodhya verdict original copy part-4
या फिर ऑफिसियल साईट पर जाकर पढ़ सकते है |
अगर लगातार होते अपडेट जानना चाहते है तो “गूगल अपडेट्स” का सहारा लें …वहां सर्च करें Ayodhya verdict, या allahabad high cort
या फिर मेरे ट्विटर Account पर आ जाईये |
एक बार फिर अपील, “कृपया शान्ति बनाएँ रखिएँ ….किसी की भी हार जीत नहीं हुई |”
“जुगाड” शब्द से तो आप भली भांति परिचित ही होंगें | इंडिया में “जुगाड” से ही बहुत से काम बन जाते है | आप भी कई काम “जुगाड” लगा कर ही लेते होंगे |और ये सिर्फ “भारत” में ही होती है |
बड़े बड़े काम बन जाते है ..बस एक जुगाड से ..
चलो देखते है ..कुछ जुगाड़े …
इस जुगाड से तो आप परिचित होंगे ही ..अगर नहीं तो बता देते है …ये ऐसा वाहन है जिसे जुगाड फिट करके “गांव” में ही बना लिया है …ना ही इसका कोई “नंबर” होता है और ना ही इसका कोई “लायसेंस”….ये “पंजाब तथा पश्चमी उत्तर प्रदेश” में खूब चलती है …
अब ज़रा इसे तो पढ़िए ……..
अब “जुगाड न० २” …ये तो नहीं पता कि ये “जुगाड” कहाँ चलती है …पर है कमाल की …
अब एक “जुगाड” जिसे मैंने भी खूब चलाया ..जब “गांव” में था …खूब क्रिकेट सुनी है …जो “सेल" टार्च से रिटायर हुए ..वे इस जुगाड से चलते थे | या फिर ये और “जुगाड” चलाते थे कि रेडियो से रिटायर सेल ...को…ऐसे ही आपस में जोड़कर …एक(या दो या तीन) “LED बल्व” जला लेते थे ..और वो शाम को काफी काम आता था |
चलो …अब इस “जुगाड” को देख लीजिए …
देशी तरीके से “पानी” को शुद्ध करने की “जुगाड”
ये तो मात्र एक झलक थी ..हम लोग जाने कितने “जुगाड़ों” से काम चला लेते है |
आप भी अपनी कोई “जुगाड” जरूर बताएं ….
अगर और किसी “जुगाड” के बारे में पढाना चाहते हो तो यहाँ क्लिक करें |
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भारतवर्ष की एक आशा उसका जन समुदाय है|
क्या आप अपने देशवासियों से प्रेम करते हैं ? आपको अपना भगवान खोजने के लिये कहाँ जाना पडता है ? क्या सभी गरीब,दुखी,शक्तिहीन भगवान नही है? क्यों न हम सबसे प्रथम उन्हीं की पूजा करें? नदी के किनारे एक कुंआ खोदने से हमें क्या लाभ ?
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अपनी दैवी शक्तियों के प्रदर्शन का एक मात्र साधन दुसरों को उनकी शक्तियों के प्रदर्शन मे सहायता देना है?
यदि हम प्रकृति में असमानता मान भी लें तब भी प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर मिलना चाहिये अथवा यदि कुछेक को अधिक अवसर हो कुछेक को काम, उस अवस्था में शक्तिहीन को शक्ति सम्पन्न से अधिक अवसर मिलने चाहिए|
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मैं उस भगवान में अथवा कर्म में विश्वास नहीं करता जिसमें एक अबला के अश्रु पोंछने की शक्ति न हो अथवा जो किसी अनाथ को एक रोटी का टुकडा न दे सके | हमारे सिद्धान्त कितने ही गौरवपूर्ण क्यों न हों, हमारा शाँख्य कितने ही कितने सुन्दर सूत्रों से क्यों न बंधा हो, हम उसे तब तक धर्म नहीं कह सकते जब तक कि वह पुस्तकों एवं निर्धारित सिद्धान्तों तक ही सीमित हो| आप को अपना भगवान खोजने कहां जाना है? क्या सभी गरीब,दुखी,शक्तिहीन भगवान नही हैं? क्यों न हम पहले उनकी पूजा करें |
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कल स्त्रियों के कारागार की स्त्री अधीक्षक यहाँ पर थीं| वे लोग इसे कारागार न कहकर मनुष्य सुधार का एक घर कहते हैं| वास्तव में मैंने अमरीका में यही एक बहुत सुन्दर वस्तु देखी| यहाँ के कारागार के निवासियों के साथ कितना सौहार्द पूर्ण व्यवहार किया जाता है,किस प्रकार से उन्हें सुधारा जाता है तथापि किस प्रकार वे समाज के लाभकारी सदस्य बनाकर समाज में वापस भेजे जाते हैं| कितना गौरव पूर्ण, कितना सुन्दर यह दृश्य होता है जिसे देखकर ही विश्वास होता है और तब मेरा ह्रदय भारतवर्ष के पतित तथा गरीब की कल्पना मात्र से किस प्रकार दुःखने लगता है| उन अभागों को न तो अवसर ही प्राप्त है न उससे छुटकारा ही और न अपने विकास के लिये कोई मार्ग ही | भारतवर्ष के विचारे गरीब,पतित तथा पापी पुरुषों के न तो कोई मित्र हैं और न उन्हें किसी का सहारा ही है| वे कितने ही प्रयत्न क्यों न करें उठ नहीं सकते| दिन प्रतिदिन वे नीचे गिरते ही जाते हैं| वे निर्मम समाज के कठोर आघातों की सतत वर्षा का अनुभव करते हैं और बेचारे यह नही जान पाते कि प्रहार किस ओर से पड रहा है| वे भूल जाते हैं कि वे भी मनुष्य हैं और जिसका फल यह होता है कि वे अपने को दासता की जंजीरों में बंधा पाते हैं|
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मैं उसी को महात्मा (महान् आत्मा वाला) समझता हूँ जिसका ह्रदय एक गरीब की आह से रो उठता है अन्यथा वह एक धूर्त आत्मा है| जब तक लाखों व्यक्ति भूख और अग्यान की अवस्था में रहते रहेंगे तब तक मैं प्रत्येक व्यक्ति को एक ऍसा देशद्रोही समझता रहूँगा जिसकी शिक्षा का भार पूरा देशवासियों पर रहा हो और जिसने लेशमात्र भी चिन्ता न की हो| ऍसे व्यक्तियों को मैं धूर्त आत्मा समझता हूँ जो कि बन ठन कर अपना मस्तक ऊँचा किए घूमतें हों परन्तु जिसने बेचारे गरीबों का रक्त चूसा हो| इनके प्रति मेरी यह धारणा तब तक बनी रहेगी जब तक की वे उन लाखों भूंखे,कंगाल तथा असहाय व्यक्तियों के उद्धार के लिए कार्य नहीं करते|
जारी……..
न न, मैं “ललित जी” की तुलना विनोद काम्बली से तुलना सिर्फ समय-अवधि के आधार पर कर रहा हूँ | वैसे “ललित शर्मा” का हिंदी ब्लोगिंग को दिया गया योगदान
सराहनीय है | आप तो हिंदी ब्लॉगिंग के सचिन हैं तो फिर “विनोद काम्बली” की
तरह यूँ कहाँ चल दिए ?
आप से एक लंबी पारी की उम्मीद है | मैं तो ठहरा एक “छोटा” ब्लोग्गर , आप लोगों को देखकर “उर्जा” और “उत्साह” मिलता है | जब आप लोग छोड़ के जायोगे तो फिर …..
खैर आपके इस फैसले के पीछे आपका कोई व्यक्तिगत कारण होगा, और आपने इस पर कई बार सोचा भी होगा | आप को “समीर जी” , “रवि रतलामी”,”दिनेश राय द्विवेदी” की तरह हर कोई हिंदी ब्लोग्गर “लंबे” काल तक देखना चाहता है |
मैं तो ये खबर सुनकर चौकन्ना रह गया | इतनी बड़ी घोषणा आप चुपके मे कर गए | आप जितने सक्रिय अभी थे, उस कम ही सही आप “ जाईये” मत ……
हम सब आपका इंतज़ार कर रहे है …..उम्मीद है आप १ या २ घंटे जरूर निकालेंगे और लिखेंगे भी |
अभी हिंदी ब्लॉग जगत में “अश्लील विज्ञापनों के खिलाफ” एक जोरदार बहस चल रही है, शुरुआत अनिल पुसदकर ने की और उस कई प्रतिक्रियाएं आयीं, जिन्हें मैंने अपनी पिछली पोस्ट में संकलित किया, उसके बाद ये ही चर्चा कई और ब्लोगों पर देखी गयी |
विषय सही है, बहस सार्थक चल रही है, जहाँ तक मेरी बात है तो इस “अश्लीलता” का मैं सिरे से विरोध करता हूँ |आखिर हम इन चीजों से हम क्या साबित करना चाहते है|
इन्हीं सारी पोस्टों, टिप्पणियों के बीच एक ऐसी टिप्पणी मिली जो किसी पोस्ट से कम नहीं लगी, अतः आप भी इसको पढ़िए |
“रचना जी, विज्ञापनों का जो मुद्दा उठाया गया है वह अपनी जगह ठीक है। वहाँ विचित्र व आपत्तिजनक विज्ञापनों की बात हो रही थी।
समस्या रवैये या कहिए attitude की है। इसका कोई सरल उपाय नहीं है। यह रवैया ही टिप्पणियों में चाहे अनचाहे झलकने लगता है। यह सदियों के अनुकूलन/ conditioning का परिणाम है। स्त्रियों का यहाँ, वहाँ, हर ब्लॉग पर भ्रमण करना कुछ व्यक्तियों के अवचेतन मन पर वही प्रभाव छोड़ता है (प्रहार करता है ) जो एक दो पीढ़ी पहले स्त्रियों को अड़ोस पड़ोस में जाकर बैठने, बतियाने, या मेला देखने, घूमने जाने पर होता था। लगता था कि ये खाली (पंजाबी में वेल्ली जनानी ) औरत समय बरबाद कर रही है। यह फालतू, घटिया औरत है। स्त्री से हर समय स्वयं को काम में व्यस्त रखने की अपेक्षा की जाती थी। यदि सब काम खत्म हो जाएँ तो सिलाई, कढ़ाई, बुनाई तो कर ही सकती थी,(मैं भी करती रही हूँ।) किसी का सिर या पैर दबा सकती थी।
लोग कहना तो शायद सही ही चाहते हैं किन्तु आदत ही ऐसी पड़ गई है कि यदि स्त्री की बात करनी है तो कुछ छोटा दिखाने वाले ( derogatory) शब्द या भाषा, या फिर सीख देने वाली भाषा अनचाहे ही अपने आप कूदकर चली आती है। मायावती, सोनिया,ममता व अपने कार्यक्षेत्रों में जब अधिक से अधिक सामना स्त्री बॉसेज़ से होने लगेगा तो यह सब अपने आप ही छूटता जाएगा। यह कुछ कुछ वैसा ही है जैसे छोटे बच्चे से बात करते समय बहुत से लोग तुतलाने वाली भाषा की मोड में आ जाते हैं, बच्चे के गाल नोचने लगते हैं आदि। हम हर समय चैतन्य नहीं रहते हैं, प्रायः स्वचालित/ औटो पायलेट वाली मोड में जीते हैं और यह उनकी स्वाभाविक यन्त्रवत प्रतिक्रिया होती है।
जहाँ तक 'स्त्रियाँ कहाँ हैं, क्यों नहीं बोल रहीं' का उत्तर है तो क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप समाचारपत्र पूरा का पूरा बिना एक स्त्री के रूप में आहत हुए पढ़ लें? या फिर ढेर सारे ब्लॉग बिना आहत हुए पढ़ लें? हाँ, हमें आपत्ति करनी चाहिए किन्तु कब तक और किस किस की? हम करते हैं, परन्तु बीच बीच में चुप भी हो जाती हैं। कश्मीर में स्त्रियों की नागरिकता को लेकर, महाराष्ट्र में बच्चों के अधिवास को लेकर जहाँ डोमिसाइल उस ही को मिलेगा जिसका पिता महाराष्ट्र में पैदा हुआ हो,या न्यायाधीष जब कहें कि पीड़िता को अपने बलात्कारी से विवाह करने का अधिकार होना चाहिए? हाँ, अवश्य होना चाहिए। किन्तु तब जब वह अपनी सजा भी पूरी कर ले। घर, बाहर, सड़क, दफ्तर, कॉलेज कौन सा स्थान ऐसा है जहाँ हमें इस रवैये का सामना नहीं करना पड़ता? यदि सड़क पर पुरुष सीटी बजाता है,बुरा व्यवहार करता है तो हमें कपड़ों पर उपदेश मिल जाते हैं। यदि स्त्री का बलात्कार होता है तब भी। यदि घर पर स्त्री का उत्पीड़न होता है तो या तो यह कहा जाता है कि तुमने ही पति को मारने को उकसाया होगा या यदि सास द्वारा उत्पीड़न हो तो यह सुनने को मिलता है कि 'स्त्री ही स्त्री की शत्रु है।'
तो जब आप रैगिंग का विरोध करते हैं तो क्या हम च च च कहने की बजाए यह कहती हैं कि 'पुरुष ही पुरुष का शत्रु है?' या फिर जब आप कहते हैं कि नगर में अपराध बढ़ गया है, हत्याएँ हो रही हैं, खुले आम घूस माँगी जा रही है या फिर जब कहीं पुरुषों पर लाठी चार्ज होता है तो क्या वही ब्रह्म वाक्य 'पुरुष ही पुरुष का शत्रु है' कह देते हैं? या फिर यदि पति दफ्तर से परेशान सताया हुआ,पुरुष बॉस की झाड़ खाकर आता है तो गरम चाय देने या उसके घावों पर मरहम लगाने की बजाए यह कह देती हैं कि 'पुरुष ही पुरुष का शत्रु है।'
स्त्री दफ्तर से आती है तो आते से ही उसे रसोई में घुसना चाहिए, पति, ससुर सास को चाय देकर भोजन बनाना चाहिए। क्योंकि वह नौकरी करके किसी पर उपकार नहीं कर रही। बड़ी अफसर होगी तो दफ्तर में। किन्तु जब पति उस ही दफ्तर से उस ही पद से काम करके आता है तो वह थका होता है, उससे उलझना नहीं चाहिए, उसे एक मुस्कान के साथ चाय देनी चाहिए। फिर निर्बाध टी वी देखने देना चाहिए।
समाज को बदलने में समय लगेगा। यदि बदलाव में उन्हें अपना लाभ दिखेगा तो जल्दी बदलेंगे यदि हानि तो देर लगाएँगे। खैर बदलना तो पड़ेगा ही। हमें क्रोध आना स्वाभाविक है किन्तु साथ साथ इस समाज की मानसिकता को भी समझना ही होगा। यह समझना होगा कि वे हम पर आक्रमण नहीं कर रहे,हमारे प्रति उनकी भाषा ही ऐसी है,लहजा ही ऐसा है। यदि स्त्री शक्तिशाली बनें,ऊँचे पदों पर बैठें तो देखिए लहजा, भाषा सब बदल जाएँगे, कम से कम स्त्री के सामने तो।
घुघूती बासूती”
सर्व-प्रथम तो आप सभी को ६१वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं |
उन सभी महान आत्मायों को शत शत नमन जिनके महान बलिदान से आज हम एक स्वतंत्र राष्ट्र में साँस ले रहे है | उनके योगदानों के बारे में लिखना, सूर्य को दीपक दिखाने जैसा है | उन्होंने वो बहुत कुछ किया जो लिखा नहीं जा सकता है |
भारत, विश्व पटल पर पहले भी जगद-गुरु की भूमिका निभाता रहा है | यहाँ के मानस में "// अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम| उदार चरितानां तु वशुधैव कुटुम्बकम //" वाक्य कूट कूट कर भरा हुआ है |
अब भी हम संस्कृति तथा सभ्यता में उत्कृष्ट है, ये उत्कृष्टता ही हमारी पहचान है | कई सभ्यताएं लगभग मिट चुकी है, पर हम अब भी बरक़रार है | हाँ कुछ तत्व है, जो इस संगमरमर पर अम्ल की तरह काम कर रहे है | पर उन्हें पता होना चाहिए कि ..
"युनान, मिस्त्र, रोमन सब मिट गए जहाँ से,
बाकी अभी है लेकिन नामोनिशाँ हमारा |
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ,
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जहाँ हमारा ||"
अब पाकिस्तान, चीन लगातार हमारी अखंडता, एकता, भाईचारे को क्षति पहुचाने की पुरी कोसिस कर रहे है| पर उन्हें पता होना चाहिए कि "भारत" अपने आप में ही एक अखंड एवं अटूट है | यहाँ बापू,पटेल, नेहरू, मौलाना कलाम, शास्त्री, अब्दुल कलाम के पद-चिन्ह है, जिन पर चलना यहाँ बच्चों बच्चों को सिखाया जाता है |
यहाँ "बापू" कहते थे ...
"मुंह से उफ़ तक किये बिना, अधिकारों के हित अडना है |
नहीं आदमी से, उसकी दुर्बलता से लड़ना है ||"
ये वही भारत है, जिसे "दिनकर" ने कहा है ...
उठे जहाँ भी घोष शांति का, भारत, स्वर तेरा है
धर्म-दीप हो जिसके भी कर में वह नर तेरा है
तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने आता है
किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है
मानवता के इस ललाट-वंदन को नमन करूँ मैं !
पर हम्हे लगातार इन्हीं आदर्शो पर चलना है, हाँ बीच में कुछ भटके है | पर अब हम में एक नया जोश है |
एक नयी उम्मीद .....एक नए ....लोहिया ....जेपी ...की तलाश ....एक "बापू"
जैसा और एक .......बच्चों का "चाचा".......की तलाश
"मन्त्र पुराने काम न देंगे, मन्त्र नया पढना है ,
मानवता के हित मानव का रूप गढना है |"
जो दुर्भावना रूकावट बने उसे....
"मसल कुचल दो विष-दंतों को, फिर न ये कभी ये काट सकें ,
करो नेंस्तानाबूत इन्हें अब, न सिर फिर ये कभी उठा सके |"
और पूरा विश्वास है ....कि हम होंगे दिन .....कामयाब ..
जय हिंद दोस्तों
एक और २६ जनबरी....हमारे सीने गर्व से तन रहे है ....हो भी क्यूँ ना ....हम एक भविष्य की विश्व-शक्ति के नागरिक है | हमारे पास युवा-शक्ति है |हमारे दुनिया का बेहतर मानव संसाधन है ....सारे इधर ही ताक रहे है | युवा प्रतिभाये ....पूरी दुनिया में लोहा मनवा रही है | रक्षा प्रलाणी में हम बेहतर होते जा रहे है, आईटी में हमारे लोहा पहले से ही है | कुल ,मिलाकर ....सही दिशा में जा रहे है | हम पहुंचेगे मंजिल पर....पूरी गारंटी है |
लेकिन किसी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लगातार एवं उचित प्रयास की जरूरत होती है | बस इसी बात को हम्हे ध्यान रखना है | हमारे इच्छाशक्ति दृढ होनी चाहिए| सबसे जरूरी मानव संसाधन, शिक्षा के स्तर में हम पिछड रहे है | मात्र कागजों पर आंकड़े दिखाने से शिक्षा स्तर नहीं सुधरेगा | मसलन कागजों में कंप्यूटर कई सरकारी स्कूलों में पहुँच चूका है , पर असलियत से आप वाकिफ होंगे ही , जब बिजली ही नहीं है , तो बेचारे कंप्यूटर.....|
लोगों का सरकारी स्कूलों पर से बिलकुल भरोसा उठता जा रहा है ,और निजी स्कूल मनमानी कर रहे है , आज निजी स्कूल जब मन चाहे फीस बढ़ा देते है |
शिक्षकों के चयन में भी काफी पारदर्शिता आनी चाहिए , क्यूँकि एक योग्य शिक्षक ...कई सारे अतिरिक्त संसाधनों से काफी है |
और क्या कहना....सबसे जरुरी शिक्षा (गुणवत्ता-पूर्ण)....शिक्षा से जागरूकता ....जागरूकता से अच्छे राष्ट्र का निर्माण होगा |और एक अच्छा राष्ट्र ही आगे (बहुत आगे) बढ़ता है |
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभ-कामनाएं
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